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Saturday 15 June 2013


पत्नी से श्रापित शनि 

गणेशजी के जन्म के अवसर पर सभी देवी देवता  भगवान् शिव तथा माता पार्वती को बधाई देने  कैलाश पर्वत पर पहुंचे. सभी ने शिशु के दर्शन कर उन्हें बधाई दी. सूर्य देव के महायोगी पुत्र  शनि देव भी गणेशजी के दर्शन के लिए पहुंचे.वे मुख को नीचे झुका कर भगवान् श्रीकृष्ण का तन्मय हो कर ध्यान कर रहे थे. पार्वती की अनुमति लेकर उनके सेवक विशालाक्ष ने शनि देव को  माता पार्वती के कक्ष में प्रवेश करवाया . शनि देव ने कंधे झुका कर माता को प्रणाम किया. शनि देव को नीचे मुख किये देख कर पार्वतीजी ने पूछा ,-"हे साधो !तुम नीचे मुख क्यों किये हुए हो ?तुम मेरे पुत्र की ओर देखते क्यों नहीं हो ? तब  शनिदेव बोले ,-"हे साध्वी !सभी लोग अपने अपने कर्मो के फल भोगते हैं .जो शुभ -अशुभ कर्म किया हुआ रहता है वह करोड़ों  कल्प बीतने पर भी लुप्त नहीं होता .कर्म के कारण ही जीव ब्रह्मा, इन्द्र ,सूर्य के भवन में जन्म लेता है और कर्म के कारण ही मनुष्यों या पशुओं के घर जन्म लेता है .हे माता ! कर्म से ही जीव विषयी या निर्लिप्त होता है .हे शंकर वल्लभे ! एक अति गुप्त इतिहास सुनो जो लज्जा जनक होने के कारण माता के सामने कहने योग्य नहीं है .मैं बचपन से ही भगवान् श्रीकृष्ण का भक्त हूँ .उन्ही के ध्यान में चित्त लगाये रखता हूँ ..उन्ही के नाम जप  में लगा रहता हूँ .और विषयों में भी सदा रत रहता हूँ .मेरे पिता ने चित्ररथ की कन्या के साथ मेरा विवाह कर दिया जो तेज पूर्ण है तथा तपस्या में लगी रहती है. एक बार ऋतु स्नान करके उसने अपना उत्तम वेश बनाया .गहनों से सज कर वह मुनियों के चित्त को मोहित करने वाली बन गयी .मुस्कुराती हुई वह मेरे समीप आई.चंचल हो कर वह बोली  की मुझे देखो .उस समय मेरा मन ध्यान में लगा था  और मैं   बाहरी  विषयों के ज्ञान से विहीन था. इसलिए उसकी ओर  देख कर मैंने उसे कुपित कर दिया.उसका ऋतु स्नान व्यर्थ जाने के कारण उसने मुझे श्राप दे दिया,-"हे मूढ़ !तुमने इस समय मुझे देखा तक नहीं .तुमने मेरे ऋतु काल की रक्षा नहीं की. इसलिए जो वस्तु तुम देखोगे वह नष्ट हो जायेगी."  ध्यान से उठने के बाद मैंने उस  पतिव्रता को संतुष्ट किया . वह श्राप मुक्त करने में असमर्थ थी. हे माता! इसी कारण मैं कोई वस्तु अपनी आँखों से नहीं देखता. कही प्राणियों की मुझ से हिंसा हो जाए, अतः मैंने सदा मुख नीचा रखने का स्वभाव बना लिया है.' यह सुन कर देवी  पार्वती हंस पड़ी और शनि देव की पत्नी के श्राप को मान कर उन्होंने शनि देव से अपने पुत्र गणेश की और देखने का आग्रह किया जिसके फलस्वरूप शनि की दृष्टि पड़ते ही गणेश का सर धड से तुरंत अलग हो गया. बाद में एक हाथी के बच्चे का सर लगाकर गणेशजी को फिर से जीवित किया गया.